Gold : ये कहानी है साल 1991 की, जब भारत को अपना सोना गिरवी रखकर देश की अर्थव्यवस्था को बचानी पड़ी थी. सरकार और आरबीआई ने मिलकर देश के बाहर 47 टन सोना गिरवी कर्ज हासिल किया था.
India Gold Reserve: भारत में सोना सिर्फ श्रृंगार नहीं, बल्कि मान-सम्मान और धर्म से जुड़ा होता है. सोने के हिसाब से लोगों की हैसियत आंकी जाती है. सोना यहां लोगों के इमोशन से जुड़ा है. जेवर बेचने की नौबत आना, आज भी भारतीयों के लिए अशुभ माना जाता है, जरा सोचिए ऐसे देश को अगर अपना सोना गिरवी रखना पड़े तो क्या होगा, लेकिन वो दौर ही ऐसा था, जब सोने को गिरवी रखने के अलावा कोई दूसरा रास्ता बचा नहीं था. आज कहानी उस दौर की जब भारत को अपना सोना विदेश में गिरवी रखना पड़ा था…
जब भारत को गिरवी रखना पड़ा था सोना
ये कहानी है साल 1991 की…देश की आर्थिक स्थिति चरमरा चुकी थी. उस समय देश के पास इम्पोर्ट करने के लिए विदेशी करेंसी नहीं बची थी. सालों या महीनों नहीं बल्कि देस के बाद सिर्फ कुछ दिन का विदेशी मुद्रा भंडार बचा था. हालात ऐसी हो गई थी कि अगर कोई रास्ता नहीं निकलता को भारत की अर्थव्यवस्था दिवालिया हो जाती है. हालात ऐसे बन गए थे कि भारत को अपना सोना गिरवी रखकर कर्ज लेना पड़ा था. इस बारे में आरबीआई के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन ने अपनी किताब में भी लिखा है.
वो दौर ऐसा था, जब देश में कारोबार पर सरकार की दखलअंदाजी चरम पर थी. देश में लाइसेंस परमिट राज था. हर चीज के लिए लाइसेंस की जरूरत पड़ती थी. कंपनी क्या माल बनाएगी, कितना बनाएगी, किसको बेचेगी सब कुछ में सरकार का दखल था. लाइसेंसी राज ने देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका दिया था. देश की क्लोज्ड इकॉनमी और राजनीतिक अस्थिरता ने अर्थव्यवस्था को खोखला कर दिया था. इकॉनमी पहले से हिली हुई थी, इसपर ‘करेले पे नीम चढ़े सी’ हालत खाड़ी युद्ध ने कर दी. भारत, जिसकी अर्थव्यवस्था जो तेल पर निर्भर थी खड़ी देश के युद्ध ने उसे और बिगाड़ दिया. 44444
आखिरी रास्ता बनकर आया सोना
खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के बीच बार-बार बदल रही सरकार के बाद 1991 में देश में चन्द्रशेखर की सरकार आई. देश को उबारने के लिए रास्ते तलाशे जाने लगे. हालात ऐसी हो गई थी कि भारत को भारत को तेल आयात करने के लिए दोगुना पैसा खर्च करना पड़ रहा था. तेल आयात करने के लिए देश के पास चंद दिनों का पैसा बचा था. भारत ने कर्ज के लिए आईएमएफ यानी इंटरनेशनल मोनेटरी फंड का दरवाजा खटखटाया, लेकिन कर्ज कैसे मिलता, क्यों उसमें तो दो तिहाई से ज्यादा वोट अमेरिका के थे. यानी कर्ज के लिए अमेरिका की रजामंदी जरूरी थी. आखिरकार बात बन गई और भारत को अमेरिका से 1 अरब 3 करोड़ डॉलर का कर्ज भी मिल गया, लेकिन भारत जैसे देश के लिए यह रकम ऊंट के मुंह में जीरे जैसा था.
क्या हुआ था 1991 में
अब प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, उनके वित्त सलाहकार मनमोहन सिंह, वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा और आरबीआई गवर्नर एस. वेंकटरमणन के मिलकर एक बड़ा फैसला लिया. फैसला था सोना गिरवी रखने का. लेकिन ये काम इतना आसान नहीं था, क्योंकि इसमें कई बाधाएं थी. सोना गिरवी रखना शर्म की बात थी, अगर देश को ये बता चल जाता को मुश्किल खड़ी हो जाती. आरबीआई की ओर से इंग्लैंड और जापान के बैंकों से डील की गई, लेकिन उन बैंकों ने शर्त रखा कि हम सोना तभी गिरवी रखेंगे जब वो भारत से बाहर किसी देश में रखा जाएगा. 47 टन सोना छिपते-छिपाते देश के बाहर ले जाना आसान नहीं था, लेकिन जुलाई 1991 में आरबीआई ने इसी किसी तरह से पूरा किया. इस तरह से आरबीआई ने 47 टन सोना गिरवी रखकर 400 मिलियन डॉलर जुटाए. स्पेशल प्लेन ने बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक ऑफ जापान भेजकर उसे गिरवी रखा गया. हालांकि बाद में यह खबर लीक हो गई.
मुद्दा इतना बढ़ा कि मनमोहन सिंह को संसद में आकर सफाई देनी पड़ी. उन्होंने संसद में स्वीकार किया कि ये दुखदाई था, लेकिन जरूरी हो गया था. हालांकि सरकार ने इस दुख को जल्द ही खत्म कर लिया. कुछ ही महीनों में सरकार ने गिरवी रखा सोना वापस खरीद लिया. सोना गिरवी रखने की घटना ने देश के आर्थिक सुधारों के लिए मोटिवेशन की वजह बना. आज देश का गोल्ड रिजर्व 822.1 टन पर पहुंच चुका है.
Source : https://zeenews.india.com/hindi/business/when-india-mortgage-47-tonnes-gold-with-the-bank-of-england-and-japan-story-of-1991-indian-economic-crisis/2271647